शांत प्रगतिशील जैव युद्ध के हथियार : सोशल मीडिया और मस्तिष्क में भय की भरमार । Aryavarta Insider

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✍️ हरित कुमार
हम आज २१ वीं सदी में जी रहे है जिसको आधुनिक युग की संज्ञा भी दी जा सकती है। आधुनिकता के इस दौर में जहां हम अपनों से पास होकर भी दूर हो गए वहीं टेक्नोलॉजी का पागलपन इस कदर बढ़ गया कि हम आज विज्ञान टेकनोलॉजी के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। हमारे दैनिक क्रियाकलाप भी पूर्णतया टेक्नोलॉजी पर आधारित है।

हमने बचपन से ही इस तथ्य को जाना की हमें अपने दोस्तों अर्थात संगति का चुनाव चेतन रूप से करना चाहिए क्यूंकि संगति ही होती है जो एक राजा को रंक और रंक को राजा बना देती है। हम ज्ञान को पढ़ते है और उसको स्वीकार कर सहेज कर रख लेते है लेकिन कभी उसको आत्मसात नहीं करते अर्थात वास्तविक जीवन में प्रयोग में नहीं लाते। हमने खुद को उस सोशल मीडिया से और टेक्नोलॉजी से घेर लिया जो एक प्रगतिशील शांत युद्ध के जैव हथियार हैं।

सोशल मीडिया के युग में किसी भी गलत जानकारी को सही साबित करना बेहद सरल होता जा रहा है और अप्रत्यक्ष रूप से हम सोशल मीडिया के द्वारा नियंत्रित होते जा रहे है। लोग अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए सच का झूठ और झूठ का सच कर रहे हैं। सोशल मीडिया चाहे तो हमको खुश कर सकता है और हमको दुखी भी। हमनें खुद को जब से टेक्नोलॉजी से घेर लिया, तब से हमारी वृद्धि रुक गईं। हम एक दूसरे पर निर्भर हो गए। 

जिस पश्चिम के लोगों ने भारतीय संस्कृति का इस कदर विनाश किया कि हम उनकी शिक्षा व्यवस्था से ज्ञान अर्जित कर खुद को दमित समझने लगे। क्या उनके द्वारा विकसित ऑनलाइन संसाधनों पर विश्वास करना एक पागलपन नहीं है? 

ये एक मानसिक युद्ध है जहां पर कुछ ऐसे हथियार बनाए जा चुके है जो हमारे मस्तिष्क के लिए बेहद हानिकारक है। दुनिया के सबसे अमीर लोग यह निश्चित कर रहे है कि वो दुनिया में दस साल के बाद क्या देखना चाहते हैं। अगर वो किसी संस्कृति पर हमला करना चाहते है तो उस देश के लोगों को और विशेष रूप से युवाओं और विद्यार्थियों को अश्लीलता से परिपूर्ण चीज़े दिखाई जा रही है। जैसे डिज़्नी ने बच्चों के अवचेतन मन में कार्टून के माध्यम से अश्लीलता का संप्रेषण करने के लिए कुछ विशेष कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया, वैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल कराए जा रहे कंटेंट के साथ भी हैं।

लोग एक विशेष प्रकार के युद्ध की अक्सर कल्पना करते हैं। जिसमे सभी लोगों के दिमाग को नियंत्रित किया जा सकता है। मैं कहता हूं वो युद्ध चल रहा है और अपने चरम पर है। देखना बाकी है मेरी ये विचार तरंगे कितने मानवों को जगाने के लिए एक कारण बन जाती है।

(लेखक एक स्वतंत्र विचारक है।)

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